जाटलैंड को साधने सहित बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व में सीधे एंट्री
हरियाणा उत्सव, गोहाना (भंवर सिंह)
हरियाणा में इन दिनों पूव केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह की रैली सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बनी हुई है। यह रैली दो अक्टूबर को जींद में आयोजित की जाएगी। यह रैली बिना भाजपा के हो रही है। बीरेंद्र सिंह पार्टी से हटकर रैली का आयोजन कर रहे हैं। इस रैली से तीन निशाने साधने की कोशिश की जाएगी। बीरेंद्र सिंह की इस रैली के कई मायने हैं। जिसमें तीन मायने सबसे अहम हैं।
पूर्व केंद्रीय मंत्री पार्टी लाइन से अलग हटकर रैली को कामयाब बनाने में जुटे हए हैं। इसके लिए उनके बेटे सांसद बृजेंद्र सिंह और परिवार के अन्य लोगों के साथ एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए हैं। बीरेंद्र मंजे हुए राजनेता हैं। वह हरियाणा की नबज अच्छी तरह जानते हैं। उन्होंने अपने समर्थकों को तिरंगे के साथ रैली में पहुंचने का आवहान किया है।
1. जाटलैंड साधने को दिखाएंगे ताकत
हरियाणा में 18 से 22प्रतिशत जाट वोट भाजपा का माना जाता रहा है। 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा कांग्रेस, INLD और जेजेपी के वोट बैंक को तोडऩा चाहती है। पार्टी चाहती है कि लोकसभा चुनाव में इस वोट प्रतिशत को 30 प्रतिशत के पार पहुंचाया जाए, जिससे विधानसभा चुनाव में भी पार्टी को मजबूत आधार मिल सके। चौधरी बीरेंद्र सिंह भी यह बात बखूबी जानते हैं, इसलिए रैली के जरिए बीरेंद्र सिंह ये बताना चाहते हैं कि मैं जाटलैंड को साध सकता हूं।
2. शीर्ष नेतृत्व में अभी सीधे एंट्री नहीं
हरियाणा में भाजपा नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह की पाटीज़् लाइन से अलग हटकर रैली करने की दूसरी सबसे बड़ी वजह यह है कि अभी उनकी सीधे दिल्ली में बैठे शीर्ष नेतृत्व के नेताओं में सीधे एंट्री नहीं है। अभी वह अपनी बात मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्?टर के जरिए या हरियाणा में पार्टी के कुछ नेताओं के जरिए ही पहुंचा रहे हैं। रैली के जरिए वह पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को अपनी अहमियत दिखाना चाहते हैं, जिससे वह दिल्ली में भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व में अपनी पैठ मजबूत कर सकें।
3. उचाना पर दावेदारी होगी मजबूत
चौधरी बीरेंद्र सिंह उचाना विधानसभा सीट से 5 बार विधायक रह चुके हैं, अभी यह सीट जजपा के खाते में है। यहां से डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला विधायक हैं। चूंकि बीरेंद्र सिंह की यह पैतृक सीट मानी जाती है। अभी भाजपा-जजपा की गठबंधन सरकार है। वह इस सीट को फिर से हासिल करना चाहते हैं, भाजपा से वह अपने बेटे के लिए यहां से दावेदारी पेश कर रहे हैं। उचाना को लेकर उनके और डिप्टी सीएम के बीच लगातार बयानबाजी होती रहती है। उचाना से साल 1977 में पहली बार चौधरी बीरेंद्र सिंह यहां के पहले विधायक बने थे।