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जानिए: भारतीय महिला होकी टीम की मुख्य खिलाड़ी मोनिका मलिक के बारे में

Monika Malik Hoki khiladi

जानिए: भारतीय महिला होकी टीम की मुख्य खिलाड़ी मोनिका मलिक के बारे में

गांवों में भी लड़कियों के लिए खेल सुविधाएं बढऩी चाहिए : मोनिका

मोनिका मलिक का जीवन परिचय

भारतीय हाकी टीम की प्रमुख खिलाड़ी मोनिका मलिक का जन्म गांव गामड़ी में पांच नवंबर 1993 को हुआ। उनके पिता तकदीर सिंह चंडीगढ़ पुलिस में कार्यरत हैं और माता कमला गृहिणी हैं। मोनिका ने बचपन में गांव की गलियों की हाकी खेलने की शुरुआत की थी। प्राथमिक शिक्षा गांव के स्कूल से हुई। इसके बाद पिता तकदीर सिंह उन्हें अपने साथ चंडीगढ़ ले गए और हाकी का प्रशिक्षण दिलाया। वहां पढ़ाई के साथ हाकी का अभ्यास किया। मोनिका ने जिला, राज्य व राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में टीम में खेले हुए बेहतर प्रदर्शन किया। 2013 में जर्मनी में हुए जूनियर महिला विश्व हाकी कप में भारतीय टीम ने कांस्य पदक जीता था, जिसमें मोनिका भी शामिल थी। टोक्यो ओलिंपिक में भी मोनिका ने भारतीय टीम में खेलते हुए शानदार प्रदर्शन किया। वे सेंटर हाफ में खेलती हैं। मोनिका रेलवे में कार्यरत हैं।

मोनिका मलिक अपने पिता बाएं तकदीर सिंह व दाएं चाचा के रामे
मोनिका मलिक अपने पिता बाएं तकदीर सिंह व दाएं चाचा के रामे

इंटरव्यू के दौरान की गई मुख्य बातें

टोक्यो ओलिंपिक में भारतीय महिला हाकी टीम ने बेहतर प्रदर्शन किया। टीम ओलिंपिक में बेशक पदक जीतने से चूक गई लेकिन महिला खिलाडिय़ों ने देश के लोगों का दिल जरूर जीत लिया। टोक्यो में भारतीय महिला टीम ने जिस तरह का प्रदर्शन किया, उससे देश में दोबारा हाकी के स्वर्णिम युग की शुरुआत होने की उम्मीद जगी है। टीम की खिलाड़ी जहां भी जा रही हैं, उन्हें विशेष सम्मान मिल रहा है। टीम की मुख्य खिलाड़ी मोनिका मलिक रविवार को अपने पैतृक गांव पहुंची तो ग्रामीणों ने उनका जोरदार स्वागत किया। टोक्यो ओलिंपिक का कैसा अनुभव रहा, भविष्य में तैयारी के लिए क्या योजना है, टीम की खिलाड़ी कैसे तालमेल बनाती हैं आदि मुद्दों पर हरियाणा उत्सव के मुख्य संपादक बी.एस बोहत  ने मोनिका मलिक से विस्तार से बातचीत की। मोनिका अपने गांव  गामडी में सम्मान समारोह में पहुंची थी।  पेश है बातचीत के प्रमुख बातें :

आपने खेलों में हाकी को ही क्यों चुना?

– बचपन से ही खेलों में रुचि है। गांव की गली में लड़कियां हाकी खेलती थीं। मैंने भी उनके साथ हाकी खेलना शुरू कर दिया। मेरा प्रदर्शन हमेशा बेहतर रहता था। दादी चंद्रपति ने मेरे हुनर को पहचाना और पिता तकदीर को अच्छी जगह प्रशिक्षण दिलाने को कहा। इसके बाद पिता अपने साथ चंडीगढ़ ले गए और प्रशिक्षण दिलाया। इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा।

टीम की दूसरी खिलाडिय़ों के साथ तालमेल कैसे बनाती हैं?

-महिला हाकी टीम में देश के कोने-कोने से खिलाड़ी हैं। सभी एक साथ अभ्यास करती हैं। सभी खिलाड़ी अनुशासन की तरफ पूरा ध्यान देती हैं। अनुशासन और साथ अभ्यास से तालमेल बनता चला जाता है। टोक्यो ओलिंपिक में जाने से पहले करीब दो साल तक बेंगलुरु साई सेंटर में सभी खिलाडिय़ों ने एक साथ अभ्यास किया। अभ्यास में टीम की सभी खिलाडिय़ों को बेहतर तालमेल बना। इसी की बदौलत टीम ने टोक्यो में बेहतर प्रदर्शन किया।

टोक्यो ओलिंपिक का अनुभव कैसा रहा?

-2016 के ओलिंपिक में हमारा कोई स्थान नहीं था। टोक्यो ओलिंपिक में हमारे सामने बेहतर प्रदर्शन की चुनौती थी। टीम की खिलाडिय़ों ने चुनौती को स्वीकार किया और कड़ी मेहनत करते हुए प्रदर्शन में सुधार किया। टोक्यो में आस्ट्रेलिया की टीम को क्वार्टर फाइनल में हराया। यह टीम के लिए बड़ी उपलब्धि रही। टीम देश के लिए खेली और बेहतर प्रदर्शन किया। देश में महिला हाकी के स्वर्णिम युग की शुरुआत हो चुकी है। टीम आगे और बेहतर प्रदर्शन करेगी।

भविष्य की क्या योजना है?

-अगले साल वल्र्ड कप, एशियन गेम्स और उसके बाद कामनवेल्थ गेम्स होने हैं। इनकी तैयारी के लिए बेंगलुरु के साई सेंटर में साथी खिलाडिय़ों के साथ अभ्यास करेंगी। फिलहाल खिलाडिय़ों को लोग सम्मान देने के लिए बुला रहे हैं। जल्द एशिएन गेम्स के लिए फोकस किया जाएगा।

आप लड़कियों को क्या संदेश देंगी?

-लड़कियां किसी भी क्षेत्र में लड़कों से पीछे नहीं हैं। लड़कियां अपनी प्रतिभा को पहचाने और कड़ी मेहनत करें। पढ़ाई के साथ एक खेल को जरूर चुनें। खेलों में करियर बनाएं। गांवों में भी लड़कियों के लिए खेल सुविधाएं बढऩी चाहिए। सरकार मेरे गांव गामड़ी में स्टेडियम बनाएं और उसमें लड़कियों के लिए विशेष सुविधाएं दी जाए।

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