सेना ने संभाला मोर्चा, 65 ने दी जान, छात्र आंदोलन जिसने 2 पीएम बदले
हरियाणा उत्सव, डेस्क
19 सितंबर 1990। दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों में हजारों छात्र भूख हड़ताल पर बैठे थे। उनमें से ही एक दल में दिल्ली यूनिवर्सिटी साउथ देशबंधु कॉलेज के छात्र थे। उनके हाथ में तख्तियां थीं जिन पर लिखा था, वीपी सिंह मुर्दाबाद, मंडल कमीशन डाउन-डाउन।
तभी आंदोलनकारियों की भीड़ से एक स्टूडेंट उठा और उसने खुद पर मिट्टी का तेल छिडक़ लिया। कोई कुछ समझ पाता, इससे पहले ही उसने खुद को आग के हवाले कर दिया। आसपास के छात्रों को लगा कि विरोध में पुतला जलाया जा रहा है। जब तक नजदीक खड़े लोग उसकी मदद करते, तब तक वो आधे से ज्यादा जल चुका था।
आत्मदाह की कोशिश करने वाला ये देशबंधु कॉलेज कॉमर्स का छात्र राजीव गोस्वामी था। घायल राजीव को तुरंत अस्?पताल ले जाया गया, जहां उसकी जान बचा ली गई।
‘रकस’ के दूसरे एपिसोड में बात 1990 में हुए मंडल विरोधी आंदोलन की। मंडल कमीशन की सिफारिशों के तहत देश में पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण लागू किया गया जिसने देशभर के स्टूडेंट्स को दो हिस्सों में बांट दिया –
20 दिसंबर 1978। सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों की स्थिति की जानकारी के लिए मोरारजी देसाई की सरकार ने एक 6 सदस्यीय पिछड़ा वर्ग आयोग (ओबीसी) गठित किया। इसके अध्?यक्ष बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल बने। यही आयोग मंडल कमीशन के नाम से चर्चित हुआ।
मंडल कमीशन ने सरकार को रिपोर्ट सौंपी और सिफारिश की कि पिछड़े वर्ग के लोगों को सामाजिक बराबरी देने के लिए नौकरियों में आरक्षण दिया जाना चाहए।
7 अगस्त 1990 को तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने मंडल कमीशन की रिपोर्ट का एक हिस्?सा लागू कर दिया जिसमें ओबीसी वर्ग को नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण देने की बात कही गई थी। ये आरक्षण, एससी-एससीटी कैटेगरी को पहले से मिल रहे 22.5 प्रतिशत आरक्षण से अलग था। इसके चलते सरकारी नौकरियों में कुल आरक्षण 49.5प्रतिशत हो गया।
अगले दिन अखबारों में जैसे ही ये खबर छपी, सामान्?य कैटेगरी के युवा फैसले से नाराज हो गए। दिल्ली विश्वविद्यालय के सवर्ण छात्रों ने मंडल कमीशन की रिपोर्ट के विरोध में प्रदर्शन शुरू कर दिया। दिल्ली यूनिवर्सिटी से मंडल विरोधी आंदोलन की पहली आवाज उठी।
22 से ज्यादा यूनिवर्सिटीज में प्रदर्शन शुरू हुए
कलम चलाना छोड़ दिया, अब बंदूक चलाना सीखेंगे। इस नारे के साथ छात्र सडक़ों पर उतर आए।
दिल्ली यूनिवर्सिटी के बाद जेएनयू, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी, पटना यूनिवर्सिटी समेत 22 यूनिवर्सिटी में इसके विरोध में प्रदर्शन हुए।
वरिष्ठ पत्रकार अली अनवर बताते हैं, ‘जब मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू हुई तब हिंदी पट्टी में विरोध जोरों पर था। न सिर्फ हिंदू, बल्कि मुस्लिम वर्ग भी इस विरोध में शामिल था। वीपी सिंह जो 1989 से पहले ‘राजा नहीं फकीर हैं’ के नारे से पहचाने जा रहे थे, अब सवर्ण छात्र उन्?हें ‘राजा नहीं रंक है, देश का कलंक है’ कहने लगे थे।
लगभग 2 हफ्तों तक यूनिवर्सिटीज में छात्रों का विरोध प्रदर्शन जारी रहा, मगर इसका कोई खास असर नहीं हुआ। आर. स्वामीनाथन ने अपने लेख यंग मैन एट वैरिकेट्स में लिखा है, छात्र सडक़ों, चौराहों पर, बसों पर चढक़र विरोध प्रदर्शन करते थे। कुछ छात्र लोगों को ये समझाने के लिए भी जुटते थे कि वे मंडल कमीशन का विरोध क्यों कर रहे हैं, लेकिन इस विरोध का सरकार पर कोई खास असर नहीं दिखाई दे रहा था।
संसद घेरने पहुंचे 10 हजार स्टूडेंट्स
छात्रों को अब लगा कि उनके अनशन और आंदोलन को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। इसके चलते 24 अगस्त 1990 को संसद घेरने की तैयारी की गई। हजारों की संख्या में छात्र हॉस्टल और यूनिवर्सिटीज से निकलकर संसद की तरफ बढ़े।
छात्र-छात्राएं बसों पर बैठकर, सडक़ों पर हाथ में स्लोगन लेकर चले जा रहे थे। जब इसकी भनक प्रशासन को हुई, तो पुलिस फौरन छात्रों को रोकने पहुंच गई। पुलिस ने इससे पहले तक पूरे आंदोलन में छात्रों पर बल प्रयोग नहीं किया था।
आंदोलन में छात्र पुलिस के सामने बार-बार दोहराते ‘अंदर की बात है, पुलिस हमारे साथ है’। मगर संसद के बाहर इतनी बड़ी संख्या में छात्रों को देखकर पुलिस ने लाठियां उठा लीं। पहली बार आंदोलनकारी छात्रों पर लाठी, डंडे और आंसू गैस के गोले बरसाए गए।
छात्रों को पकडक़र बसों में भरा गया और दिल्ली के छत्रपाल स्टेडियम ले जाया गया। ये खबर अगले दिन के सभी बड़े अखबारों के फ्रंट पेज पर थी।
हजारों की संख्या में छात्र हॉस्टल और यूनिवर्सिटीज से निकलकर संसद की तरफ बढ़े।
हजारों की संख्या में छात्र हॉस्टल और यूनिवर्सिटीज से निकलकर संसद की तरफ बढ़े।
पुलिस फायरिंग में 2 छात्र मारे गए
15 अक्टूबर 1990 को इंडिया टुडे में छपी एक खबर के अनुसार, दिल्?ली में आंदोलनकारी छात्रों ने एक बड़े चौराहे को बंद कर दिया। इसे कुर्बानी चौक का नाम दिया। छात्रों ने कई दिनों तक ट्रैफिक जाम रखा। आखिरकार भारी संख्या में पहुंचे पुलिसकर्मियों ने चौक को खाली कराया और लगभग एक हजार छात्रों को गिरफ्तार कर लिया।
अगले दिन छात्रों ने चौक पर दोबारा कब्जा करने की कोशिश की तो पुलिस से उनकी तीखी झड़प हुई। जब लाठीचार्ज और आंसू गैस से भी छात्र नहीं हटे, तो पुलिस ने गोलियां चला दीं। इसमें दो लोग मारे गए। क्रांति चौक पर पुलिस फायरिंग में 2 लोगों की मौत हुई।
छात्रों को रोकने के लिए सेना को लगाया
चंडीगढ़ में भी आंदोलन कर रहे छात्रों ने सैकड़ों सरकारी गाडिय़ों, इमारतों और दफ्तरों में आग लगा दी। छात्र इतना बेकाबू हो गए कि सेना को बुलाना पड़ा। ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद ये पहला मामला था जब सेना को बुलाया गया। फौज को अंबाला, सिरसा, कुरुक्षेत्र और रोहतक सहित लगभग एक दर्जन अन्य शहरों में तैनात किया गया था।
आरक्षण विरोधियों ने वीपी सिंह और राष्ट्रीय मोर्चा सरकार को संकेत दिया था कि उनका इरादा पीछे हटने का नहीं है। किताब ‘द डिसरप्टर’ में देबाशीष मुखर्जी लिखते हैं कि इस आंदोलन में 152 छात्रों ने आत्महत्या करने की कोशिश की। इस आंदोलन में 65 छात्र मारे गए।
आंदोलन में छात्र इतना बेकाबू हो गए कि उन्होंने तोडफ़ोड़ और आगजनी कर दी। जिसके बाद सेना बुलानी पड़ी। आंदोलन में छात्र इतना बेकाबू हो गए कि उन्होंने तोडफ़ोड़ और आगजनी कर दी। जिसके बाद सेना बुलानी पड़ी।
मोरारजी सरकार में पड़ी थी मंडल कमीशन की नींव
पिछड़ों के लिए आरक्षण की मांग करने वाले मंडल कमीशन की नींव बहुत पहले यानी 20 दिसंबर 1978 को ही पड़ गई थी। उसके बाद कई सरकारें आईं और बदलती रहीं, जिससे मंडल कमीशन ठंडे बस्ते में चला गया। इसके बाद जनता दल के नेता वीपी सिंह ने अपने मैनिफेस्टो में मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू करने के मुद्दे को शामिल किया।
वीपी सिंह, 1984 में राजीव गांधी सरकार में वित्त मंत्री थे। 1989 में वीपी बोफोर्स घोटाला केस में राजीव के ही खिलाफ हो गए। ये वही वीपी सिंह थे जो 1975 में इमरजेंसी के समय सरकार के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोले थे।
1989 में हुए आम चुनाव में जनता दल बहुमत से जीत गया। इसके बाद ये बहस तेज हो गई कि अगला पीएम किसे बनाया जाए। आखिरकार, चौधरी देवीलाल को पीछे छोड़ वीपी सिंह देश के सातवें प्रधानमंत्री बने।
वीपी सिंह पीएम तो बन गए थे, लेकिन 1990 तक देवीलाल और उनके बीच राजनीतिक मतभेद काफी बढ़ चुके थे। देवीलाल ने लगभग पांच लाख लोगों के साथ 9 अगस्त को एक बड़ी रैली करने की घोषणा की। वीपी सिंह डर गए और उन्हें लगा देवीलाल के समर्थन में माहौल न बन जाए। इसे काउंटर करने के लिए वीपी सिंह ने अचानक मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू कर दी।
मंडल के विरोध में आडवाणी ने कमंडल की राजनीति छेड़ी
मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के विरोध में आत्मदाह की कोशिश करने वाले दिल्?ली के छात्र राजीव गोस्वामी को देखने के लिए भाजपा नेता लालकृष्?ण आडवाणी अस्पताल पहुंचे थे। वो जब पहुंचे तो छात्रों ने उन्?हें घेर लिया और सरकार के खिलाफ नारेबाजी करने लगे। दरअसल जनता पार्टी, भाजपा के बाहरी समर्थन के साथ सत्?ता में थी।
लेखक और राजनीतिज्ञ डॉ. प्रेम कुमार मणि बताते हैं, छात्रों का आंदोलन उग्र हो चुका था। बीजेपी को लग रहा था कि अगर वो आरक्षण के फैसले पर वीपी सिंह का साथ देती है, तो सवर्ण बीजेपी का विरोध कर सकते हैं। ऐसा होने पर उसके वोट भी बंट सकते हैं।
आडवाणी ने इस घटना के बाद एक रणनीति बनाई। उन्होंने मंडल से सबका ध्?यान हटाने के लिए कमंडल की राजनीति शुरू की। आडवाणी ने 12 सितंबर 1990 को राम मंदिर के लिए रथ यात्रा करने की घोषणा की। 25 सितंबर को गुजरात के सोमनाथ से यात्रा शुरू हुई। आडवाणी ने 12 सितंबर 1990 को राम मंदिर के लिए रथ यात्रा करने की घोषणा की।
आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद गिरी वीपी सिंह की सरकार
रथयात्रा जब बिहार होते हुए उत्?तर प्रदेश पहुंचने को थी, तब यूपी के सीएम मुलायम ने बयान दिया, ‘अयोध्या में कोई परिंदा भी पर नहीं मार पाएगा।’ ऐसा कह कर मुलायम ने आडवाणी को अयोध्या आकर दिखाने की चुनौती दी। हालांकि यूपी पहुंचने से पहले ही 23 अक्टूबर 1990 को बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने आधी रात को रथ यात्रा रोक ली और आडवाणी को समस्तीपुर से गिरफ्तार कर नजरबंद कर दिया।
इस घटना के बहाने बीजेपी ने जनता पार्टी को दिया अपना समर्थन वापस ले लिया और वीपी सिंह की सरकार गिर गई। इससे बीजेपी के सवर्ण वोट भी सधे रहे और मंडल की राजनीति कमंडल की ओर मुडऩे लगी।
चंद्रशेखर बने देश के 8वें प्रधानमंत्री
वीपी सिंह की सरकार गिरने के बाद, जनता दल के नेता चंद्रशेखर 64 सांसदों के साथ पार्टी से अलग हो गए और समाजवादी जनता पार्टी बनाई। जिस कांग्रेस का विरोध करके जनता दल सत्ता में आई थी, उसी के समर्थन से 10 नवंबर 1990 को चंद्रशेखर देश के आठवें प्रधानमंत्री बन गए।इस सबके बीच मंडल कमीशन का विरोध जारी रहा। इस विरोध प्रदर्शन के साथ ही साथ 17 जनवरी 1991 को केंद्र सरकार ने पिछड़े वर्ग में शामिल समुदाय की लिस्ट तैयार की।
महज तीन महीने बीते थे कि कांग्रेस ने चंद्रशेखर सरकार से भी समर्थन वापस ले लिया। अल्पमत में आने के बाद चंद्रशेखर को पीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा।
नरसिम्हा राव सरकार ने बढ़ाई आरक्षण की सीमा
सरकारें बदलती रहीं, लेकिन इस सबके बीच मंडल कमीशन के विरोध की आग नहीं बदली। 24 सितंबर 1991 को पटना में आरक्षण विरोधियों और पुलिस के बीच झड़प हुई। पुलिस फायरिंग में चार छात्र मारे गए।
अगले ही दिन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने सामाजिक शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान की और आरक्षण की सीमा बढ़ाकर 59.5त्न करने का फैसला किया। जब ये खबर अखबारों में छपी तो एक बार फिर नॉर्थ दिल्ली के साथ-साथ साउथ दिल्ली में भी आरक्षण के विरोध में प्रदर्शन तेज हो गए। यहां भी छात्रों पर पुलिस फायरिंग हुई और दो छात्रों की मौत हो गई।
आरक्षण विरोधी और समर्थक छात्रों में संघर्ष हुए
मंडल कमीशन को लेकर सवर्ण छात्रों के बढ़ते संघर्ष को देखकर ओबीसी वर्ग के छात्रों को लगा कि सरकार गिर सकती है। ऐसे में ओबीसी छात्रों का वर्ग मंडल कमीशन के समर्थन में आ गया। अगड़ी-पिछड़ी जातियों के छात्रों के साथ-साथ प्रोफेसर और शिक्षक भी दो हिस्?सों में बंट गए और संघर्ष बढ़ गया। इसके चलते उदयपुर में कफ्र्यू भी लगाना पड़ा।
1 अक्टूबर 1991 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से आरक्षण के आर्थिक आधार का ब्?योरा मांगा। अगले ही दिन गुजरात में सवर्ण और ओबीसी छात्रों में संघर्ष छिड़ गया और राज्य के सभी शैक्षणिक संस्थान बंद कर दिए गए। छात्रों का एक वर्ग मंडल कमीशन के समर्थन में आ गया। अगड़ी-पिछड़ी जातियों के छात्रों के साथ-साथ प्रोफेसर और शिक्षक भी दो हिस्सों में बंट गए।
सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा तय की
17 नवंबर को राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और उड़ीसा में एक बार फिर उग्र विरोध प्रदर्शन हुए। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में 16 बसों में आग लगा दी गई जिसके बाद सौ लोग अरेस्ट हुए। दिल्?ली यूनिवर्सिटी में 2 और छात्रों ने आत्?मदाह की कोशिश की और पुलिस से झड़प में 50 से ज्यादा घायल हुए।
लगभग 1 साल बाद, 16 नवंबर 1992 को सुप्रीम कोर्ट ने मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू करने के फैसले को वैध ठहराया। साथ ही आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत रखने और पिछड़ी जातियों के उच्च तबके को इससे अलग रखने का निर्देश दिया।
वी राजशेखर को मिली OBC आरक्षण से पहली नौकरी
केंद्र सरकार ने 8 सितंबर 1993 को नौकरियों में पिछड़े वर्गों को 27 फीसदी आरक्षण देने की अधिसूचना जारी कर दी। 20 सितंबर को दिल्?ली के क्रांति चौक पर राजीव गोस्वामी ने इसके खिलाफ एक बार फिर आत्मदाह का प्रयास किया। 3 दिन बाद इलाहाबाद की इंजीनियरिंग की छात्रा मीनाक्षी ने आत्महत्या कर ली।
छात्रों के प्रदर्शन लगातार जारी रहे। पुलिस और छात्रों की झड़प में सैकड़ों लोग घायल हुए। इस सबके बीच, 20 फरवरी 1994 को मंडल आयोग की सिफारिशों के तहत वी राजशेखर आरक्षण के जरिए नौकरी पाने वाले पहले कैंडिडेट बने। तत्कालीन समाज कल्याण मंत्री सीताराम केसरी ने उन्हें नियुक्ति पत्र सौंपा। वी राजशेखर (बीच में) के साथ वीपी सिंह
मैंने टूटी टांग से गोल कर दिया है
सबसे पहले मंडल कमीशन के विरोध में आत्मदाह की कोशिश करने वाले राजीव गोस्वामी का लंबी बीमारी के बाद 24 फरवरी 2004 को निधन हो गया।
Note- मंडल कमीशन के 40 बिंदुओं में से केवल दो ही लागू किए जानिए बाकी बिंदु