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Bohat:अधिकार पाने के लिए मनुवादियों के सामने नहीं झुके राम विलास

Ch. Ramvilas Bohat

-वाल्मीकि समाज में बोहत गोत्र के रामविलास के बारे में जाने

शेर दिल पुरुष रामविलास ने 93 साल की जीवन यात्रा पुरी की
 

उनके जीवन की मुख्य घटना
रामविलास गुस्से में होने के बाबजूद बहुत ही शांत और निष्पक्ष तरीके से काम करते थे। उनकी हाईट करीब 6.2 फीट थी, वह बहुत ही स्ट्रांग (मजबूत) ऊंची कद काटी के पुरुष थे। रामविलास आम तौर पर शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ थे। रामविलास को पक्षपात झूठे आरोपों और अंधे विश्वास से सख्त्त नफरत थी। रामविलास को केवल पूरा सच ही अच्छा लगता था और वह उस तक पहुँचाने के लिए सभी विकल्पों का अध्यन करते थे। वह जल्द-बाज़ी में फैसले नहीं लेते थे। वह सभी पक्षों को और सभी विकल्पों का अध्यन करके ही फैसला लेने वाले पुरुष थे। वह बहुत ही जिद्दी ्रस्वभाव के पुरुष थे। वह अपने फैसले से कभी भी पीछे नहीं हटे। उन्होंने बहुत ही संवेदनशील और संतुलित तरीके से जीवन व्यतीत किया। उनका जन्म हरियाणा के सोनीपत जिले के गांव आहुलाना केचौधरी ईंद्रराज बोहत (वाल्मीकि समाज) के घर में 01 जनवरी 1928 को हुआ और 7 दिसंबर 2021 को दोपहर करीब दो बजे गांव खानपुर कलां स्थित भगत फुल सिंह महिला मेडिकल कालेज में अंतिम सांस ली। 8 दिसंबर 2021 बुधवार को गांव आहुलाना की शमशान भूमि पर अंतिम संस्कार किया।

रामविलास देश सेवा के लिए सेना में भर्ती हुए।

वह उस समय सेना में भर्ती हुए जब लोग सेना में भर्ती होने से डरते थे। सेना में भर्ती करने के लिए सैनिक दादा घासी मलिक के नोहरे में आते थे। भर्ती के समय गांव के युवा गांव छोडकर भाग जाते थे। ऐसे समय में उन्होंने सेना में भर्ती होने का निर्णय लिया। जिसे उनको शेर दिल कहना उचित होगा।
उन्होंने कई साल तक सेना में अपनी सेवाएं दी। अपने कार्यकाल में अनेक आतंकवादियों को मौत के घाट उतारा और सेना के ओपरेशनों को कामयाब बनाने में अहम योगदान दिया। एक बार दुश्मनों के साथ झडप हो गई। इस झडप में वह गंभीर रूप से घायल हो गया। गंभीर घायल होने के बाद भी वह पीछे नहीं हटा। इस लडाई में उनका अंगुठा भी कट गया था। उसके बाद वह सेना से सेवनिवृत हो गए। उनकी जीवीका सेना की पेंशन से चलती थी।

सेना में भर्ती होने से पूर्व वह अपने परिवार सहित गोहाना के नजदीक गांव सैनीपुरा भी रहे। यहां पर वह बाधे पर खेती करते थे। लेकिन यहां पर उनका मन नहीं लगा। कुछ वर्षों के बाद वह और उसके तीन लडके राजेश बोहत व मुकेश बोहत एक अन्य सफींदो में रहने लगे। तीन लडके सतबीर बोहत, राजन बोहत व धर्मबीर बोहत गांव आहुलाना में रहने लगे।

-संत के चोले में रहते थे रामविलास
वह सेना से सेवनिवृत होने के बाद उन्होंने एक सादा जीवन जीने का प्रण लिया। उन्होंने संत का चोला ले लिया। संत की वेशभूषा में रहे और समाज के लिए उधारण बने। उन्होंने विपरित परिस्थितियों के सामन कभी नहीं झुकना संदेश दिया । विपरित परिस्थितियों का डटकर मुकाबला करना चाहिए। दबंगता ही आपकों अधिकार दिला सकती हैं। अधिकार मांगने से नहीं मिलते, अधिकार तो छीनने पड़ते हैं।

-अधिकार पाने के लिए दबंगो के सामने नहीं झुके चौधरी रामविलास
करीब 1987 वर्ष की बात है। वाल्मीकि कालानी से बरोदा रोड पर जाने वाले रास्ते पर दबंग समाज के लोगों ने कब्जा कर लिया था। पूरा गांव उनके घर को पीछे हटाकर रास्ता निकालना चाहता था। जबकि घर के सामने एक दबंग समाज के व्यक्ति की जमीन लगभग डेढ एकड जमीन खाली पडी थी। यह जमीन मलकियत थी या कब्जा किया गया था। इसकी पुष्टी नहीं है। गांव खाली जमीन से रास्ता निकालने की बजाए, वाल्मीकि मसाज के घरों को तोडकर रास्ता निकालना चाहता था। वाल्मीकियों को गरीब व बेसहारा समजकर गांव के पंचायती व मौजीज व्यक्ति के साथ पूरा गांव जीद्द पर डटा हुआ था। गांव उनके घर को तोडने के लिए तैयार था। रामविलास परिवार और पूरा गांव आमने सामने था। इसी मुद्दे को लेकर गांव में कई बार पंचायतें (समझोता बैठके) हुई। एक पंचायत में तो वाल्मीकि समाज के लोगों ने भी उनका साथ छोड दिया था और उनके खिलाफ बोलने लगे। ऐसे समय में भी उन्होंने धैर्य नहीं खोया। पंचायत में ही फैसला हो गया था कि जब गांव और उनका समाज उनके साथ नहीं है, तो रास्ता किसके लिए छोडे। इसी बात को लेकर रामविलास के भतीजे स्व. चौधरी सुरत सिंह पुत्र चौधरी केवल सिंह बोहत ने पंचायत में ही खडे होकर बोल दिया था कि हमारे समाज के लोग हमारे नहीं, गांव के लोग पहले ही हमारे खिलाफ हैं, तो फिर रास्ता किसके लिए छोड दें। हमारी लाशों के ऊपर से होकर रास्ता निकाल लेना। उसके बाद पंचायत खत्म कर दी। रामविलास और उनके पुत्र व भतीजे कफन सिर पर बांधकर अपने घर के पास बैठ गए। यह एक अन्याया के खिलाफ लडाई थी। यह लडाई करीब दो वर्षो तक चली। ऐसी स्थित में रामविलास ने मानसिक धैर्य नहीं खोया। यहां पर यह कहना गलत नहीं होगा कि रामविलास शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ थे। नई ग्राम पंचायत बनी, इसबार गांव के भीतरले पाने से चौधरी लालचंद मलिक सरंपच बने। उन्होंने रामविलास से झोली कर गांव के लिए रास्ते की मांग की। रामविलास ने दरियादिल दिखाते हुए अपने घरों को करीब दस फीट तक पीछे हटाया और रास्ता खोल दिया। (यहां पर राजा बलि और वामन वाली कहानी फीट बैठती है)
-जी हां मैं इसी रास्ते की बात कर रहा हूं जिस रास्ते से आज आप और पूरा गांव वाल्मीकि कालोनी से होते हुए बरोदा रोड पर पहुंचतेे हो। असल में यह रास्ता वाल्मीकि चौपाल के साथ होते हुए मादा वाले जोहड के ऊपर से सीधे बरोदा रोड पर जाता था। लेकिन गांव गलत लोगों के सहयोग में गलत जगह से रास्ता निकालना चाहता था। बस इसी बात को लेकर विवाद हुआ था। इस विवाद को लेकर भी शेर दिल पुरुष रामविलास दबंगों के सामने नहीं झुके। वह विपरित परिस्थितियों में भी डटे रहे। अंत में सरपंच लालचंद मलिक के स्नेह भरे शब्दों के सामने वह झुक गए और अपने घर तोड कर रास्ता खोल दिया।

-इसी तरह की एक घटना का जिक्र ओर करना चाहूंगा।
रामविलास सेना में भर्ती होने से पूर्व गांव में भी आधे-बाधे पर खेती करते थे। महम रोड पर खेत आधे पर ले रखे थे। यह खेत चौधरी नारायण  सिंह पांचाल (नाणसिंह) के बाग के पास थे। रामविलास का लगाव चौधरी नारायण सिंह पांचाल के साथ भी बहुत था। वह ज्यादातर बाग में ही रहता था। कहा जाता कि चौधरी नारायण सिंह भी हथियार बनाने का शोकिन था। पिस्तोल, बंदूक, भाले, बरच्छी आदि हथियार बनाने में माहिर था। यहां पर यह बात गलत नहीं होगी कि शेर दिल आदमी शेर दिल आदमी के साथ ही दोस्ती करता है। इसलिए रामविलास की दोस्ती चौधरी नारायण सिंह के साथ थी और यहीं पर खेती करते थे।  उन्होंने गांव के एक जमीनदार का खेत आधे-बाधे पर ले रखा था। उसने खेत में कचरे की बेल लगा रखी थी। एक दबंग व्यक्ति आया और खेत से कचरे ताडने लगा, जब उसे रोका तो वह रामविलास की तरफ मारने के लिए दौडा। लेकिन रामविलास ठहरा शेर दिल उसने उसे एक ही लाठी में चित कर दिया। झगडा देख दबंग व्यक्ति के समाज के लोग रामविलास पर टूटपडे, लेकिन रामविलास 10-15 लोगों के सामने एकेला लड रहा था। इसी बीच एक महिला ने कहा कि इतने जने एक को मारोगे, बस इस गैप का फायदा उठाकर वह करीब आठ फीट ऊंची कांटेदार खेत की बाड को कूदकर बाग में जा पहुंचा। वहां पर उनका संरक्षण चौधरी नारायण सिंह पांचाल ने किया। बंदूक लेकर दबंगों के सामने खडे हो गए थे। दोनों में उम्र का बहुत ज्यादा अंतर थाl

*रामविलास चार भाईयों में तीसरे नंबर पर थे।
रामविलास के पिता का नाम चौधरी ईंद्रराज बोहत था।
ईंद्रराज के चार पुत्र थे। उनके पुत्रों के नाम इस प्रकार हैं।
1- चौधरी केवल सिंह बोहत- के सात पुत्र
2-चौधरी जयकरण बोहत- का एक पुत्र।
3-चौधरी रामविलास बोहत- के छह पुत्र
4- चौधरी प्यारेलाल बोहत- के दो पुत्र।

लेखक भंवर सिंह बोहत पोत्र केवल सिंह

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